Political – J&K चुनावः जम्मू कश्मीर चुनाव में इतना ‘पाकिस्तान-पाकिस्तान’ क्यों होने लगा?- #INA
जम्मू कश्मीर चुनाव ( ख्वाजा आसिफ, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती)
पाकिस्तान के जिक्र के बगैर भारत में चुनाव हो जाए, बड़ा मुश्किल है. बिहारः जो पाकिस्तान से सैकड़ों कोस दूर है, वहां का चुनाव 2015 में (जब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अगर लालू-नीतीश के हाथ सत्ता आई तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे) इससे बच नहीं पाया था. तो पड़ोसी जम्मू-कश्मीर इससे कैसे अछूता रहता. पाकिस्तानी चैनल जियो न्यूज की पहचान और करीब दो दशक पुराने मशहूर टीवी शो ‘कैपिटल टॉक’ के होस्ट हामिद मीर ने पिछले हफ्ते वहां के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से एक बातचीत की. इंटरव्यू का अहम हिस्सा तो दूसरे बिंदुओं पर था मगर गुफ्तगू के आखिरी कुछ मिनटों में जम्मू कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव का जिक्र आया.
हामिद मीर ने ख्वाजा आसिफ से पूछा – भारत में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस कह रही है कि अगर हम चुनाव जीत गए तो 370 और 35ए के सस्पेंशन को खत्म कर देंगे (जबकि ये पूरी तरह दुरुस्त बात नहीं). क्या हम ये कह सकते हैं कि पाकिस्तान की रियासत और कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेस इस मुद्दे पर एक पेज पर हैं?. “हां, इस मुद्दे पर तो बिल्कुल.” ख्वाजा आसिफ के बमुश्किल इन 5 या 6 शब्दों ने जम्मू कश्मीर चुनाव प्रचार को गर्मा दिया. गृहमंत्री अमित शाह ने 24 घंटे के भीतर इसको लपका और कांग्रेस और पाकिस्तान के इरादे-एजेंडे को एक बता दिया.
PM ने कहा – ‘पाकिस्तान में हो रही बल्ले-बल्ले’
अगले ही दिन जम्मू कश्मीर के कटरा (माता वैष्णो देवी सीट) में प्रधानमंत्री की रैली थी. पीएम ने अमित शाह के रुख को आगे बढ़ाया. कहा – “पाकिस्तान और कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस का एजेंडा एक है. कांग्रेस और नेशनल कांंफ्रेंस को लेकर जम्मू कश्मीर में भले उत्साह न हो मगर पाकिस्तान इनको लेकर उत्साहित है और वहां इनके घोषणापत्र को लेकर बल्ले बल्ले हो रही है.”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री से भी दो कदम और आगे बढ़े. उन्होंने ख्वाजा आसिफ के बयान के हवाले से सवाल किया कि क्या ये दोनों पार्टियां (कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस) यहां (भारत में) पाकिस्तान के प्रॉक्सी के तौर पर काम कर रही हैं? रक्षा मंत्री ने ये बातें उस नेशनल कांफ्रेंस को लेकर कहीं जिसके साथ अतीत में बीजेपी का गठबंधन रह चुका है, और कांग्रेस देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है.
एक चीज और ध्यान रहे, नेशनल कांफ्रेंस ने भले जम्मू कश्मीर में धारा 370 की वापसी और राज्य का दर्जा बहाल करने की बात की है. लेकिन कांग्रेस पार्टी की टॉप लिडरशिप या उनका घोषणापत्र कहीं भी 370 की बहाली का जिक्र नहीं करता. कांग्रेस का एनसी से गठबंधन है और हां, कांग्रेस राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर जरुर मुखर है. मगर इतने विस्तार में कौन जाता है! चुनाव में एक बात निकल गई तो फिर निकल गई.
महबूबा, उमर और फारूक अब्दुल्ला का पलटवार
आरोप लगने लगे. पलटवार होने लगे. पीडीपी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जवाब दिया. कहा – “बीजेपी को शेख खानदान का (अब्दुल्ला परिवार) शुक्रगुजार होना चाहिए कि उमर अब्दुल्ला ने उनका एजेंडा यहां लागू किया. अगर पाकिस्तान का एजेंडा अब्दुल्ला खानदान ने लागू किया होता तो जम्मू-कश्मीर हिंदुस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि पाकिस्तान का हिस्सा होता या आजाद होता.”
महबूबा ने इस कदर अब्दुल्ला परिवार को ‘हिंदुस्तान और बीजेपी परस्त’ बताते हुए घाटी में उनकी सियासत का कितना नफा किया और कितना नुकसान, ये फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला बेहतर जानते होंगे. शायद इसीलिए उमर या फारूक अब्दुल्ला ने महबूबा मुफ्ती के इस बयान को आगे नहीं बढ़ाया. बजाय इसके, उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान से आए बयान पर और हाय-तौबा मचे, दूरी बरत ली.
उमर ने कहा, “पाकिस्तान को हमारे से क्या लेना-देना…हम तो पाकिस्तान का हिस्सा हैं ही नहीं. वो अपना मुल्क संभाले, हम अपना संभाले. वो अपनी जम्हूरियत को बचाएं, हम अपनी जम्हूरियत में हिस्सा ले रहे हैं.” फारूक अब्दुल्ला ने थोड़ी और सख्त लाइन ली, कहा – “हम तो हिंदुस्तानी हैं, मैं समझता हूं कि ये (बीजेपी) खुद पाकिस्तानी हैं और खतरा हमें दिखा रहे हैं.” ये बयानबाजी हफ्ते भर के भीतर हुई.
‘भारत-पाकिस्तान बातचीत’ पर आमने-सामने
जम्मू कश्मीर में शायद यह पहला विधानसभा चुनाव है जब किसी भी अलगाववादी संगठन ने चुनाव का बहिष्कार नहीं किया है. चूंकि ज्यादातर अलगाववादी नेता या फिर हुर्रियत के लोग नजरबंद या जेल के अंदर हैं, कुछ चुनाव लड़ रहे हैं… पाकिस्तान का जिक्र, यूएन के हवाले से रायशुमारी और आजादी की बात जम्मू कश्मीर चुनाव में नहीं हो रही थी. हां, इस्लामाबाद-दिल्ली के नरम रिश्तों की पैरोकारी कश्मीर के क्षेत्रीय पार्टियों का पुराना स्टैंड है, सो वो था.
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में पाकिस्तान की चर्चा ख्वाजा आसिफ के बयान से पहले केवल क्षेत्रीय पार्टियों के घोषणापत्र तक सीमित था. पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस दोनों ने भारत-पाकिस्तान वार्ता की हिमायत की थी. मगर भारतीय जनता पार्टी का इस पर रुख अगर-मगर वाला रहा है. ऐसे में, ख्वाजा आसिफ के बयान के बहाने दूसरा चरण आते-आते इस मौजू पर भी कश्मीर के सियासतदां और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व आमने-सामने आ गया.
पाकिस्तान से बाचचीत की वकालत वाले कश्मीरी पार्टियोे के स्टैंड के खिलाफ गृहमंत्री और रक्षामंत्री अमित शाह सख्त दिखे. शाह ने कहा – “ये कहते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत करो, जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता, तब तक हम पाकिस्तान से वार्ता नहीं करेंगे. अगर बात करनी है तो नौशेरा के शेरों (जम्मू कश्मीर के नौजवानों) के साथ बातचीत करेंगे.” फारूक अब्दुल्ला ने पलटवार किया – “जो चीन हमारे 2 हजार किलोमीटर जमीन पर काबिज है, अगर उससे बातचीत हो सकती है तो पाकिस्तान से दिक्कत क्या है.”
राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के जिक्र को एक नया आयाम दे दिया. सिंह ने 60 फीसदी से अधिक वोट करने के लिए प्रदेश के लोगों का धन्यवाद करने के साथ यह भी जोड़ दिया कि “जम्मू-कश्मीर में जम्हूरियत का परचम लहराते देख पाकिस्तान के पेट में दर्द शुरू हो गया है… पाकिस्तान IMF से 7 बिलियन डॉलर की मदद मांग रहा है, इससे ज्यादा पैकेज तो मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को दिया है… पाकिस्तान की ऐसी हालत इसलिए हो गई है क्योंकि साँपों को पालने और उनका कारोबार करने का अंजाम हमेशा बुरा होता है.”
आगे क्या?
दूसरे चरण में साफ तौर पर दिखा कि कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों के इस्लामाबाद-दिल्ली बातचीत, 35ए और 370 पर स्टैंड के बरक्स बीजेपी पाकिस्तान को ‘सबक सिखा देने’ वाले रुख के जरिये पड़ोसी मुल्क का जिक्र करती चली गई. खासकर, जम्मू में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस के एजेंडे को पाकिस्तान से जोड़ते हुए राजनीतिक माइलेज लेने की कोशिश हुई.
‘द क्विंट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में अपनी 155 रैलियों में कम से कम 104 दफा पाकिस्तान का जिक्र किया था. चुनावी नतीजों में भाजपा कहां रही, सभी जानते हैं. हालांकि, देश के दूसरे भागों की तुलना में जम्मू में पाकिस्तान और कश्मीर में पाकिस्तान के जिक्र के मायने थोड़े अलग होते हैं.
पाकिस्तान को चुनाव प्रचार के केंद्र में लाने का फायदा बीजेपी को मिलता है या नहीं? 8 अक्टूबर, 2024 का इंतजार करें.
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