Political – महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए होंगे सिर्फ 72 घंटे, नतीजों से पहले शुरू हो गई सियासी केमिस्ट्री- #INA

महाराष्ट्र में सियासी केमिस्ट्री हुई शुरू

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे शनिवार को आएंगे. नतीजे आने के बाद सरकार गठन के लिए सिर्फ 72 घंटे का समय ही मिलेगा, क्योंकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है. ऐसे में अगर 25 नंवबर तक नई सरकार नहीं बनती है तो संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा. यही वजह है कि नतीजे से पहले ही बैठकों का दौर शुरू हो गया है ताकि सियासी केमिस्ट्री बनी रहे और गठबंधन में आपसी मतभेद न हो सकें. इसी के मद्देनजर कांग्रेस नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने आपसी तालमेल बनाए रखने की कवायद शुरू कर दी है.

महाराष्ट्र चुनाव को लेकर आए तमाम एग्जिट पोल में बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति की सरकार बनाने की संभावना जताई गई है, लेकिन महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने सभी एग्जित पोल के दावे को खारिज कर दिया है. महाविकास अघाड़ी का दावा है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन अटल है. महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने जा रही है. महा विकास अघाड़ी के प्रमुख नेताओं ने गुरुवार को मुंबई में बैठक आयोजित कर महामंथन किया, जिसमें सरकार बनाने और विधायकों को एकजुट रखने की रणनीति की चर्चा हुई.

महाविकास अघाड़ी में शुरू हुई चर्चा

मुंबई के ग्रांड हयात होटल में गुरुवार देर शाम महा विकास अघाड़ी के तीन घटक दलों के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई है. इस बैठक में कांग्रेस के बालासाहेब थोराट और सतेज पाटिल, शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से सांसद संजय राउत, अनिल देसाई और एनसीपी (एस) के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल शामिल थे. ढाई घंटे तक चली बैठक के बाद महाविकास अघाड़ी के ये सभी नेता एक साथ शरद पवार से मिलने उनके सिल्वर ओक बंगले पर पहुंचे. इसके बाद निकल कर उद्धव ठाकरे से मातोश्री जाकर मुलाकात कर बैठक की जानकारी को शेयर किया.

सूत्रों की माने तो महाविकास अघाड़ी के प्रमुख नेताओं ने बैठक कर सरकार बनाने की रणनीति और विधायकों को संभालने पर विस्तृत चर्चा की. इस दौरान मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस पर भी चर्चा की गई. साथ ही इस बात पर भी मंथन किया गया कि सरकार गठन में निर्दलीय और बागी नेताओं की अहम भूमिका हो सकती है. ऐसे में निर्दलीय और चुनाव लड़ने वाले बागी नेताओं के साथ संपर्क बनाने का भी प्लान बना है. बालासाहेब थोराट और जयंत पाटिल को बागी नेताओं के साथ संपर्क बनाने के मिशन में लगाया गया है. इतना ही नहीं महाविकास अघाड़ी के विधायक न टूट जाएं, इसके लिए भी रणनीति बनाई गई है. नतीजे आने के साथ ही जीतने वाले सभी विधायकों को मुंबई लाने का प्लान बनाया गया है.

MVA में सीएम पद को लेकर खींचतान

हालांकि, महाविकास अघाड़ी नेताओं की बैठक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के उस बयान के बाद हुई, जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनेगी. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और सरकार बनाएगी. नाना पटोले के बयान पर उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने कहा कि महा विकास अघाड़ी सरकार बनाएगी, लेकिन सीएम किसका होगा यह फैसला तीनों पार्टियां बैठकर करेंगी. ऐसे में साफ है कि सीएम पद को लेकर महाविकास अघाड़ी नेताओं में खींचतान चल रही है. इसके चलते ही देर शाम बैठक हुई ताकि आपसी मतभेद न हो और मुख्यमंत्री पद को लेकर गठबंधन में दरार न आए.

मुंबई के ग्रांड हयात होटल में महाविकास अघाड़ी नेताओं की हुई बैठक में सीएम पद का फार्मूला तय किया गया है. महा विकास अघाड़ी में शामिल दल में जिसके विधायक अधिक होंगे, उसका सीएम बनेगा. इस तरह नतीजे आने के बाद तीनों दलों के विधायक सीएम पद के लिए नेता का चयन करेंगे. नाना पटोले के बयान को शरद पवार ने गंभीरता से लिया है. उन्होंने एमवीए नेताओं को हिदायत दी है कि जब तक चुनावी नतीजे नहीं आ जाते बयानबाजी से बचा जाए. एक-दूसरे के खिलाफ ऐसे बयान न दिए जाएं, जिससे कि गठबंधन में तनाव निर्माण हो और उसका फायदा महायुति उठाए.

सरकार बनाने के लिए 72 घंटे का समय

महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है, इसके चलते 23 नवंबर को चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार गठन के लिए सिर्फ 72 घंटे का समय ही राजनीतिक दलों को मिल सकेगा. 26 नवंबर तक गठबंधन बनाने में विफल होने पर राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा. विभाजित जनादेश की संभावना बहुत ज्यादा है, क्योंकि 1990 के बाद से राज्य में किसी भी एक पार्टी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है. हालांकि, राष्ट्रपति शासन लागू करने से पहले, राज्यपाल के पास सदन में अपनी बहुमत साबित करने के लिए सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रित करने का अधिकार है.

वरिष्ठ अधिवक्ता और कानून विशेषज्ञ ध्रुव गुप्ता कहते हैं कि सरकार गठन के विकल्प पर विचार किए बिना राष्ट्रपति शासन लगाने का सवाल ही नहीं उठता. चुनाव के नतीजे आने के बाद सरकार बनाने के लिए कई दावेदार होंगे. ऐसे में राज्यपाल को अपने विवेक पर उनमें से किसी एक को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए और उसे एक निश्चित समयावधि के भीतर सदन में बहुमत साबित करने का निर्देश देना होगा. ऐसे में कोई सरकार बनाने से अपने कदम पीछे खींचता है या फिर बहुमत साबित नहीं कर पाता हैं, तब कहीं जाकर राष्ट्रपति शासन लगाने की मंजूरी देनी होगी. हां, एक बात जरूर है कि 26 नवंबर से पहले सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी कर लेनी होगी.

महाराष्ट्र की नई सरकार बनने से पहले अगर किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिली तो राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या चुनाव पूर्व के गठबंधन को मौका दे सकते हैं. यह उस पार्टी या गठबंधन पर निर्भर करता है कि वह सरकार बनाए या नहीं. इसके अलावा अगर किसी गठबंधन के पास बहुमत है तो उसके घटक दलों में तनातनी हो जाए तो फिर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन का ही विकल्प बचेगा. महायुति और महा विकास अघाड़ी दोनों ही इस बात को बखूबी समझ रही है. ऐसे में सियासी कसरत शुरू हो गई है.

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन न लगे इसलिए जल्द से जल्द सरकार बनाने की कवायद है और बागी उम्मीदवारों को फिर से पार्टी में शामिल करने की रणनीति है. महा विकास अघाड़ी के नेताओं में चल रही खटपट और चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद विधायक न टूटें, इसलिए उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखने जैसे मुद्दों पर गुरुवार को हुई बैठक में चर्चा हुई. बहुमत नहीं मिला तो क्या प्रबंध किए जाएंगे, इस पर भी चर्चा की गई.

क्या रहा महाराष्ट्र के जनादेश का इतिहास

महाराष्ट्र में किसी पार्टी को बहुमत 1985 में मिला था, जब कांग्रेस ने 161 सीटें जीती थीं. तब से, सात विधानसभा चुनावों में खंडित जनादेश और गठबंधन सरकारें बनी हैं. महाराष्ट्र में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है. महाराष्ट्र में सबसे पहले साल 1980 में राष्ट्रपति शासन लगा फिर 34 साल बाद यानी साल 2014 में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा और तीसरी बार साल 2019 में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा, जब नतीजे आने के बाद सीएम पद को लेकर शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. राष्ट्रपति शासन जैसी स्थिति न बन सके, इसके लिए सियासी केमिस्ट्री बनाने की कवायद शुरू हो गई है.

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button