सेहत – सीता की तरह सोशल मीडिया? दिमाग की बुलबुला, बच्चों को बनाया बागी !

आज हर इंसान के दिन की शुरुआत व्हाट्सएप, फेसबुक या शहादत जैसे सोशल मीडिया से होती है। बच्चों का होमवर्क हो या ऑफिस के मैसेज, जन्मदिन की शुभकामनाएं हों या किसी फीचर की तस्वीरें, सभी सोशल मीडिया की मदद से हम तक पहुंचते हैं। हमारी जिंदगी में सोशल मीडिया का घुसपैठिया इस कदर बढ़ गया है कि ऐसा लगता है कि जिंदगी बिना अधूरी है। यही कारण है कि आज सोशल मीडिया पर जिंदगी की कालजयी टिप्पणी करना भी मुश्किल हो गया है। लेकिन खतरे की घंटी तब बजती है, जब बड़ो के साथ-साथ दोस्तों की जिंदगी भी सोशल मीडिया पर अपने पैर पसारने लगती है। आजकल सोशल मीडिया पर इसे लेकर चर्चा हो रही है कि बातें सोशल मीडिया के इस हमले से कैसे की जाती हैं और इसका इस्तेमाल पहले कम उम्र में चेतावनी चेतावनी जरूरी है या नहीं।

अमेरिका में गूंजा मामला
पिछले दिनों अमेरिका के सर्जन जनरल डॉ. विवेक मूर्ति बच्चों के बचपन को बचाने के लिए उन्हें सोशल मीडिया से दूर रखें की विचारधारा थी। उन्होंने कहा कि इससे बच्चों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। जिस तरह सीताफल और शराब पर चेतावनी लिखी जाती है, ठीक उसी तरह सोशल मीडिया ऐप्स को चेतावनी लिखनी चाहिए।

सोशल मीडिया पर खतरनाक नशे की तरह है
2019 में अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन अध्ययन में बताया गया कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर 3 घंटे से ज्यादा समय बिताते हैं, उनमें अवसाद का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, गैलप पोल के अनुसार बच्चे रोज़ाना 5 घंटे सोशल मीडिया पर छुट्टियां बिता रहे हैं। सिर्फ बच्चे ही नहीं बड़े भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए इस कादर कर रहे हैं कि वह 24 घंटे ऑनलाइन ऑफ़लाइन हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में दुनिया के 378 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे. इनमें से 84% यात्री 18 से 29 साल के थे। मनोचिकित्साप्रेमी असल में सोशल मीडिया पर शराब और सिगरेट की तरह ही लोग अपनी आदत बना रहे हैं। इसका उपयोग करके लोग अच्छा महसूस करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया के इस्तेमाल से उनके शरीर में डोपामाइन नाम का हैपी हार्मोन रिलीज होता है जो इस प्लाट फॉर्म से दूर नहीं हो रहा है।

यूट्यूब में लोग सबसे ज्यादा फेसबुक, उसके बाद यूट्यूब और तीसरे नंबर पर व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं।(Image-Canva)

युवाओं का वीडियो सोशल स्टेटस
नई जनरेशन कंपनी हमेशा से ही मोटिवेट देखने के लिए तैयार रहती है। मनोचिकित्साप्रेमी कहा जाता है कि यंगस्टर्स सबसे ज्यादा सेलिब्रिटीज को फॉलो करते हैं और पैपराजी कलचर अपने हर अपडेट लोगों तक पहुंचाते हैं। हाल की खबरें इसलिए क्योंकि उन्हें काम करना चाहिए लेकिन युवाओं को ये हकीकत नहीं पता. वह अपने फेवरेट एक्टर्स या एक्ट्रेस की तरह सोशल मीडिया पर शो ऑफ करती हैं, जहां कहीं नाचा चाहती हैं तो वह भी अपनी बात कहती हैं। इसलिए अपनी हर एक्टिविटी के बारे में पोस्ट जारी की हैं। कई टीनेजर इस प्लाट फॉर्म पर अपने रिलेशन की लॉन्चिंग-हार्ड लॉन्चिंग तक कर रहे हैं। जिसका असर उनकी पढ़ाई के साथ ही पर्सनैलिटी डियोडैम पर भी पड़ रहा है। अगर कोई बच्चा 12 से 18 साल का है और उसे सोशल मीडिया से दूर करने की कोशिश की जाए तो वह चिड़चिड़ा, गुस्सेल और बागी तक बन सकता है। शरीर में टेस्टोस्टेरोन, प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजेन नाम के हार्मोन का प्रभाव- बढ़ता रहता है जो इन्हें इस तरह का बना देता है।

अकेलेपन की तरफ से सोशल मीडिया
दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉ.राजीव मेहता कहते हैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों के लिए ‘मी टाइम’ बन गया है। यह उनके लिए ‘फील गुड फैक्टर’ जैसा है लेकिन यही एहसास उन्हें हकीकत की दुनिया से दूर ले जा रहा है। वर्चुअल वर्ल्ड को वह अपनी दुनिया से जुड़े हुए हैं और अपने परिवार से, दोस्तों से दूर होते जा रहे हैं। वह अनजाने में अकेलेपन का शिकार हो रही हैं। सोशल मीडिया पर इतना दबदबा है कि वह लोगों के बीच खुद को एडजस्ट नहीं कर पाते, अपने मन की बात को किसी से शेयर नहीं करते, दोस्तों की कमी है और यह सब चीजें उन्हें अंगेजाई और डिप्रेशन का शिकार बना रही हैं।

अमेरिका के मशहूर लेखक निकोलस जी.कैर ने अपनी किताब ‘द शैलोज: वॉट द इंटरनेट इज डूइंग टू डायरेक्टर ब्रेन्स’ में सोशल मीडिया को खतरनाक बताया है।(इमेज-कैनवा)

चीज़ें भूलने लगे हैं लोग
सोशल मीडिया पर लाइक और शेयर के मकड़जाल में प्यारे लोग अब चीजें भूलने लगे हैं। पहले लोगों को कई साल पुरानी बातें इसलिए भी याद रहती थीं क्योंकि वह मोबाइल जैसे ब्लू लाइट से दूर थे। उसके पास हर चीज की रिकॉर्डिंग थी और चोरों का दिमाग हमेशा याद रहता था। 2015 में सोशल मीडिया के इस खतरे को कनाडा की वॉटरलू यूनिवर्सिटी की स्टडी ने भी साबित किया. उन्होंने कुछ लोगों पर शोध किया और पाया कि जो लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे, उन्हें याद रखा गया था। असली जिंदगी आसान बनाने वाले इस प्लेटफॉर्म ने लोगों को खुद पर इतना प्रतिबंध लगा दिया है कि लोगों ने कागज पर लिखना ही छोड़ दिया है।

चेतावनी देना जरूरी क्यों?
डॉ.राजीव मेहता विश्वास है कि लोगों को चेतावनी दी जाती है. सोशल मीडिया ऐप म्यूजिक से पहले अगर आप लोगों के बीच जागरूकता की चेतावनी देते हैं तो इसका कितना उपयोग करना है और कैसे खुद की मानसिक सेहत को बनाए रखना है। कई अध्ययन यह बात कह रहे हैं कि 2.5 से 3 घंटे तक सोशल मीडिया का उपयोग सुरक्षित करना है। अगर 3 घंटे के बाद मोबाइल पर वॉर्निंग फ्लैश हो रही है तो यात्रियों को भी बचाया जा सकता है क्योंकि बार-बार उन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि वे सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा वक्त बिताते हैं।

सोशल मीडिया डिडॉक्स ऐसे अपनाएं
हर किसी को अपने घर में एक नियम बनाना चाहिए कि सुबह 3 घंटे और ब्रेकफास्ट, मोशन और डिनर के समय मोबाइल बैन हो। मोटे तौर पर इसका एट्रिब्यूशन बिल्कुल ना हो और रविवार को जब पूरा परिवार साथ हो तो मोबाइल दूर रखा जाता था। साथ ही अपने खुशनुमा निजी दोस्तों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की सलाह दी। खुद में किए गए छोटे-छोटे बदलावों से सोशल मीडिया के खतरनाक प्रभावों को दूर किया जा सकता है।


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