सेहत – सिताराम येचुरी के शव को एम्स में दिया गया दान, देहदान के बाद क्या होता है शव के साथ? जानें

सीपी सिम नेता सिताराम येचुरी का गुरुवार को 72 साल की उम्र में एम अनाम में निधन हो गया था। जिसके बाद उनकी इच्युइलर कंपनी ने उनके मृत शरीर को एम रिमूवल को ही दान कर दिया। अंतिम दर्शनों के बाद येचुरी के शव को एम एनाटॉमी विभाग में पुनः स्थापित किया जाएगा। हालाँकि, डेंटल क्लिनिक में अंतिम संस्कार के बाद मृत शरीर का रखरखाव होता है? यह शव कितने दिन तक अस्पताल में रखा हुआ है? फिर से कोई होटल उसे वापस मांग सकता है? क्या आप उस शव का दाह-संस्कार भी कर सकते हैं? आइए इन सभी प्रश्नों के उत्तर बिंदुओं में जानें ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्र से…

मृत शरीर का क्या होता है उपचार?
डॉ. मिश्र कहते हैं कि जब भी कोई दान की हुई देह अस्पताल में आती है तो वह असाध्य एनाटोमी विभाग में ही जाती है, हर छात्र को इस विषय को लेकर अध्ययन करना पड़ता है और शव की चिर-फाड़ का मतलब होता है डिस्केक्शन के माध्यम से शारीरिक संरचना और भी उपयोगी ऑपरेशन की सर्जरी सीखता है।

ये भी पढ़ें

चाय-पकौड़े में ही क्रेटियाँ आती हैं याद, कुछ और क्रेटियाँ नहीं? केवल आदर्शवाद नहीं, यह वैज्ञानिक कारण है

सबसे पहले शरीर को करें सुरक्षित
मृत्‍यु के एक दो दिन बाद ही शव निकलने लगता है, जिसमें बेकरीरिया पत्थने भी शामिल हैं, ऐसे में सबसे जरूरी है कि दान की गई देह को सुरक्षित किया जाए। इसके लिए कई तकनीकें अपनाई जाती हैं। इनमें से एक हैल तकनीक। इसमें शव के ऊपर एक लेप लगाया गया है। ऐसा करने से शव नर बना रहता है और इसमें बैक्फ्लैटिरिया भी नहीं बनता। इस तकनीक में गंध भी कम आती है, ऐसे में छात्रों को इसमें खोदना, काटना, टुकड़े करना शामिल नहीं है। इसके अलावा इस शव पर फॉर्मेलिन भी लगाया जा सकता है, यह शव को धारण और प्राकृतिक गुणों में भी शामिल होता है।

साथ ही डेड बॉडी में एक सोल्यूशन भी शामिल है। ऐसा करने से जब तक शरीर को रखा जा सकता है, रख सकते हैं। इसमें कुछ भी शामिल नहीं है.

फिर शव की करते हैं चिरफाड़
जब शरीर को सुरक्षित रखा जाता है तो उसे डॉक्टर की पढ़ाई करा कर छात्रों के बीच ले जाया जाता है। यहां अलग-अलग समूहों में छात्रों को शव के अलग-अलग कार्यों का पृथक्करण करने के लिए दिया जाता है। शरीर में गर्दन, पेट, हाथ, पैर सभी की अलग-अलग चीर-फाड़ करके अंगों के अंदर की समानताएं होती हैं। ऐसा तब तक किया जाता है जब तक कि शव को पूरी तरह से स्थापित नहीं किया जाता है। ऐसा करके विद्यार्थी पढ़ाई के साथ-साथ रिसर्च वर्कशॉप भी बनाते हैं।

हटाएं हैं हड्डियां
इसके बाद शव के क्षत-विक्षत हो जाने पर उसके अवशेषों को निकाल लिया जाता है। इन टुकड़ों से भी छात्र आगे की पढ़ाई करते हैं। जबकि बाकी शरीर को डिस्पले ऑफ डिस्पले में रखा जाता है।

इस परिवार को वापस ले लिया गया है शव?
देहदान के बाद शव को परिवार को वापस नहीं दिया जाता है। न ही परिवार वाले भी शव कंसलटेंसी के लिए अस्टीटल में भर्ती के विकल्प हैं। अगर कोई अस्थियां मांगता भी है तो, अस्थियां इसे लेकर आप भी जा सकते हैं और दे भी सकते हैं। आमतौर पर ऐसा नहीं होता.

शव का क्या होता है अंतिम संस्कार?
डॉ. मिश्र का कहना है कि डिस्क्रेशन के बाद और हड्डियां निकालने के बाद शव में ऐसा कुछ बचा नहीं है कि उसे दाह-संस्कार या दफन किया जाए। अस्पताल के स्वामित्व में उसे डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कर दिया जाता है।

शव कितने वर्ष का होता है?
डॉ. बौद्ध भिक्षुओं के शव को ब्रिटेन में रखने का मुख्य नियम 7 साल का है, लेकिन भारत में ऐसा कोई नियम नहीं है। जब 50-100 छात्र समूह पूरी बॉडी का डिस्कशन करेंगे तो डेडबॉडी एक ही से चलन में है।

आख़िर क्या है देहदान का फ़ायदा?
डॉ. मिश्र शिष्यों की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए शवदान या देहदान बहुत उपयोगी है। रियलिटी के हर स्टूडेंट को शुरुआत में एना टोमी की पढ़ाई में डिसेक्शन करना होता है, ऐसे में डेड बॉडीज तो मिलनी ही चाहिए। अगर कोई इच्छीछा से दान करता है, तो यह और भी बेहतर है।

ये भी पढ़ें

18 साल के बाद कितनी ऊंचाई बढ़ सकती है? एक आर्टिकल में बताया गया है 3 चीजें, लंबाई का सवाल होगा पूरा


Source link

Back to top button