सेहत – करोड़ों की कौन सी करामाती दवा ज़ोल्गेन्स्मा है, जिसके लिए राजस्थान में क्राउड फंडिंग की गई थी

दुर्लभ बीमारी का 8.5 करोड़ रुपये का इंजेक्शन: जयपुर के किशोर अर्जुन जांगिड़ की जान बचाने के लिए उन्हें करोड़ों रुपये का लाइफ सेविंग इंजेक्शन दिया गया है। केवल 28 महीने के अर्जुन को न्यूरोस्कुलर नाम की आनुवंशिक बीमारी है। इसका इलाज इतना महंगा है कि अर्जुन के माता-पिता इसका खर्चा नहीं उठा सकते थे। उन्होंने क्राउडफंडिंग के जरिए 8.5 करोड़ रुपये जुटाए, जिसमें उनके वकील ने भी साथ दिया।

जब अर्जुन केवल छह महीने का था तब उसे अपने पैर हिलाने में भी कठिनाई हुई थी। दिसंबर 2023 में, दार्शनिक ने बताया कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) है, जो एक रेयर डिजीज है। जयपुर के जेके लोन अस्पताल में बाल रोग के सहायक प्रोफेसर डॉ. धन राज बागड़ी ने बताया, “इस बीमारी में जोल्गेन्स्मा (Zolgensma) नाम की दवा दी गई है। यह एक जीन थेरेपी है जिसका उपयोग एसएमए से पीड़ित दो-तीन साल के बच्चों के इलाज के लिए किया जाता है। लेकिन यह एक बेहद शक्तिशाली उत्पाद है।” अस्पताल में रेयर डिजीज के पीआई डॉ. प्रियांशु मथुर ने कहा, ”इस अस्पताल में चौथा ऐसा मामला है जिसमें रेयर बीमारी से पीड़ित मरीज पर करोड़ों का आरोप लगाया गया है।”

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यह औषधि किस काम आती है
जोल्गेन्स्मा दुनिया की सबसे ताकतवर औषधियों में से एक है। यह एक जीन थेरेपी उपचार के लिए क्लिनिकल मस्कुलर एट्रोफी है। अधिकतर मरीज़ों को नियमित रूप से दी जाने वाली पारंपरिक दवाएँ दी जाती हैं। लेकिन जोल्गेन्स्मा एक सिंगल डोज जीन थेरेपी है। लेकिन इससे जो फायदे मिलते हैं, उसका असर लंबे समय तक दिखाई देता है। हालाँकि इस दवा को भारत में बिक्री के लिए कोई सिद्धांत नहीं मिला है, लेकिन डॉक्टर की सलाह और सरकार की मंजूरी के बाद इसे आयात किया जा सकता है।

क्यों है इतना ख़राब
जोल्गेन्स्मा की भारत में एक खुराक की कीमत कई करोड़ रुपये बैठती है। यह महंगा होने की वजह से इसकी मोटी लागत है। कई प्राचीन अध्ययनों के लिए एक कॉम्प्लेक्स जीन थेरेपी विकसित करने की आवश्यकता है। फिर इसके रियल एस्टेट पर बड़े पैमाने पर निवेश किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक एक नई दवा की बाजार में कीमत लगभग 2.6 बिलियन डॉलर (लगभग 217 अरब रुपये) है। एकल खुराक होने के कारण इसे बनाने वाले से एक बार ही रेवेन्यू पैदा किया जा सकता है। क्योंकि यह बार-बार निकोलस जाने वाली किसी अन्य दवा की तरह के निर्माता को कॉन्स्टेंट रिवोल्यूशन नहीं देता है। लागत की बंदोबस्ती सीमित संख्या में समुद्र तट से की जाती है।

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क्या है स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफ़ी
साइक्लोन मस्कुलर एट्रोफी एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार अर्थात एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जो पीड़ित के नर्व सेल और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाने वाले का काम करता है। ये बीमारी बहुत ही खतरनाक होती है. इस विकार से 10,000 छोटे बच्चे प्रभावित होते हैं। यह असंगठितता की कमी का कारण बन सकता है। यह बीमारी समय के साथ प्रतिकूल होती है, लेकिन नियंत्रित करने में मदद करने के लिए दवा और अन्य उपचार उपलब्ध हैं।

जोल्गेन्स्मा क्विंट कीमत कौन बनाता है
जोल्गेन्स्मा अमेरिका की दवा स्युटिकल कंपनी नोवार्टिस द्वारा बनाई गई दवा है। स्पाइनल मस्क एट्रोफी की दुनिया की पहली एसएमए ड्रग स्पाइनजा थी, जिसे 2016 में अमेरिका में मंजूरी दे दी गई थी। दूसरी ओर, रिसडिप्लम, जिसे एवरिसडी के नाम से जाना जाता है, ब्रिटेन में उपलब्ध है। लेकिन नोवार्टिस द्वारा बनाई गई जोल्गेन्स्मा इस बीमारी में सबसे ज्यादा उम्मीद बंधती है। भारत में इसके एक डोज की कीमत 17 करोड़ रुपये बैठती है। एक अध्ययन के अनुसार हाल के वर्षों में करीब 90 बच्चों को यह इंजेक्शन दिया गया है।

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क्या है जीन थेरेपी
जीन थेरेपी एक रासायनिक दवा है जिससे किसी भी बीमारी का इलाज करने के लिए आनुवंशिक तत्वों में बदलाव किया जाता है। जीन थेरेपी से किसी व्यक्ति के डीएनए में मौजूद चिकित्सकों को ठीक किया जाता है। जीन थेरेपी से दवाएं या सर्जरी की आवश्यकता नहीं है। जीन थेरेपी में, मरीज़ों की सलाह में सुधारात्मक जीन को वायरल या साइंटिस्ट साइंटिफिक की मदद से सुरक्षित रखा जाता है। इसके अलावा, नाविक में प्रोटीन या प्रोटीन के समूह के उत्पादन के तरीके में बदलाव किया जाता है। इससे, किसी व्यक्ति विशेष में आनुवंशिक कमी को पूरा किया जाता है। इससे कैंसर या संक्रमण का इलाज भी संभव है। जीन थेरेपी के माध्यम से वंशानुगत घटक को रोका जा सकता है, इलाज किया जा सकता है या ठीक किया जा सकता है।

कैसे काम करता है करोड़ों रुपए
क्राउडफंडिंग के लिए अर्जुन जांगिड़ की जान की मदद ली गई। उनकी जान बचाने के लिए राजस्थान के 2.5 लाख से ज्यादा सरकारी टीचर्स ने दान दिया। इसके अलावा प्राइवेट प्राइवेट लिमिटेड ने भी अपने सीएसआर फंडर्स के माध्यम से योगदान दिया। अर्जुन की मां सरकारी इंजीनियर हैं, जबकि पिता एक निजी कंपनी में इंजीनियर हैं। अर्जुन के पिता पंकज जांगिड़ ने कहा था, ”जब जर्नलिस्ट ने हमें बीमारी और इसके इलाज के बारे में बताया तो ऐसा लगा जैसे दुनिया ही खत्म हो गई हो।” हालाँकि, सूची जारी की गई और राज्य सरकार, शिक्षा विभाग, निजी बैंकों और लोगों से अपील की गई। आठ महीनों में हम 8.5 करोड़ रुपये जुटाने में सफल रहे।”


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