सेहत – ऑफिस का काम दिल को कैसे बना रहा बीमार? वर्कशॉप का डेथ कनेक्शन क्या है?
पुणे की एन्सर्ट एंड यंग (EY) कंपनी में काम करने वाली 26 साल की लड़की एना सेबेस्टियन की मौत हो गई। वह सी.ए.टी. लड़की की मां ने लिखी कंपनी की बेटी को धमकी और आरोप लगाया कि बेटी की जान वर्कलोड की वजह से हुई है। उन्होंने कहा कि बेटी दिन-रात बिना सोए और बिना किसी छुट्टी के लगातार काम कर रही थी। एना ने 18 मार्च 2024 को कंपनी जॉइन की थी। सीए एना के प्लास्टिसिटी कार्डियक अरेस्ट से हुई डेथ ने आज के शोरूम वर्कशॉप पर पूछताछ कर दी है। काम में रुकावट क्या ला सकती है, इस पर लापरवाही हो गई है।
तनाव दिल की सेहत
रीवायर, रीवर्क और रीक्लेम: दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हाउ टू फैक्ट्रियां स्ट्रेज़ के लेखक मनोचिकित्सक डॉ.राजीव मेहता कहते हैं मस्तिष्क शरीर की हर गतिविधि को नियंत्रित करता है। जब शरीर में तनाव होता है तो ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है जिससे दिल पर दबाव बढ़ जाता है और दिल से जुड़ी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। कई बार तनाव से ब्लड क्लॉट भी बन जाते थे। वर्कलोड से इंसान बर्न आउट हो जाता है।
53% भारतीय वर्कलोड स्ट्रेज़ को
अखिल भारतीय असोसिएशन एक सर्वे में पाया गया कि 53% भारतीय काम के बोझ और लंबी दूरी के कारण तनाव में रहते हैं। एनवायरमेंट इंटरनेशनल में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन की रिपोर्ट चपी. इसके मुताबिक 2016 में लॉन्ग शिफ्ट करने से 745000 लोगों ने स्ट्रोक और दिल की बीमारी की वजह से दुनिया को जिंदा कह दिया। ऐसा मामला 2000 में 29% तब बढ़ा। इनमें से ज्यादातर लोग हर हफ्ते 55 घंटे से ज्यादा काम कर रहे थे।
हर किसी की जान का दुश्मन नहीं है वर्कशॉप
दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग में ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट दीप्ति कार्ल बताएं कि वर्कशॉप ड्राइवर से किसी की जान चली जाए ऐसा नहीं होता. लेकिन तनाव का दूसरा कारण जान का दुश्मन बनना भी बन सकता है। हर इंसान की पर्सनैलिटी एक-दूसरे से अलग होती है। व्यक्ति अपनी पर्सनैलिटी के खाते से वर्कलोड को जांचता है। कुछ लोग इस तनाव को सहन नहीं कर पाते जिसका असर उनके शरीर पर पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति कुछ दिन लंबे समय तक काम करे, तब समस्या नहीं है लेकिन अगर 6 महीने से ज्यादा समय तक इंसान ऐसा करे तो यह गंभीर समस्या बन सकती है।
नियमों के हिसाब से भारतीय कर्मचारी एक दिन में 9 घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकते (Image-Canva)
स्ट्रेस हार्मोनिकेटे स्वास्थ्य
दीप्ति कार्ल कहते हैं कि जब दिमाग में तनाव बढ़ जाता है, तो शरीर में कार्टिसोल (कोर्टिसोल) नाम के स्ट्रेस हार्मोन निकलने लगते हैं। इस शरीर का इमाम सिस्टम में प्रवेश होता है और व्यक्ति जल्दी बीमार रहता है। अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से वर्कशॉप झेल रहा है तो उसे कार्डियोवेस्कुलर से जुड़ी परेशानियां होने लगी हैं। ऐसे लोग हाई कोलेस्ट्रॉल, ब्लड ड्राईवाल के मरीज बन जाते हैं। रोग उपकरण क्षमता कम से कम उनके शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाती है। यानी कॉर्टिस हार्मोन धीरे-धीरे दिल को बीमार बना देता है।
हर 30 मिनट में ब्रेक जरूरी
अधिकांश लोग एक दिन में 12 से 17 घंटे लगातार लैपटॉप पर काम करते हैं। लगातार एक जगह से मांसपेशियां थकने लगती हैं। जब कोई व्यक्ति छोड़ता है तो कोई भी मेटाबोलिक सक्रियता होती है तो मांसपेशियों में संकुचन होता है जिससे मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे हार्मोन रिलीज होते हैं। इसलिए काम करने के बीच में हर 30 मिनट में ब्रेक लेना जरूरी है। इस ब्रेक में बॉडी बनाना जरूरी है। कुर्सी से 10 कदम की दूरी। अगर उठ नहीं सकता तो कुर्सी पर बैठे मुखियाओं को 8 नंबर टूटे हुए गोल घुमाएं, फिल्में और अभिलेखों को भी घुमाएं। इससे मसल्स में थकान नहीं होगी और तनाव भी हावी नहीं होगा।
फैक्ट्री एक्ट 1948 के अनुसार सप्ताह में 24 घंटे आराम देना जरूरी है (छवि-कैनवा)
शरीर देता है अस्वस्थता के संकेत
डॉ.राजीव मेहता कहते हैं कि कार्यशाला वृद्धि पर मनुष्य का शरीर और व्यवहार शब्द संकेत देते हैं। इन अवधारणाओं को समझकर इंसान खुद को तनाव से बचा सकता है। जब कोई व्यक्ति काम के बोझ से दबता है तो उसे झटका लगता है। वह परिवार को समय नहीं देता, उसका शौक छूट जाता है, बेकार और धूम्रपान करने लगता है। यह अप्राकृतिक संकेत होते हैं. वहीं जब आंख, पीठ और अल्ट्रासाउंड में दर्द होने लगे और कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो समझ लें कि वर्कलोड शरीर को नुकसान पहुंचा है। वर्कशॉप से बचने के लिए खुद को समय देना जरूरी है। अगर आप अतिरिक्त काम को ना कह सकते हैं और अगर ऐसा बिजनेसमैन नहीं है तो कंपनी बदलना ही समझदारी है।
नींद ना आये तो संभल जाओ
तनाव सबसे ज्यादा नींद को प्रभावित करता है। नींद पूरी ना ली जाए तो ज्यादातर लोगों का वजन बढ़ने लगता है। यही खतरे की घंटी भी है. जब दिमाग थका हुआ होता है तो मांसपेशियां भी थक जाती हैं। कम सोने या ना सोने से दिमाग के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है। काम करने की शारीरिक क्षमता भी स्थिर होती है जिससे इंसान की स्वयं की छवि बदल जाती है। जब इंसान यह सलाह देता है कि मैं पहले जैसा नहीं था, तब उसे संभलना चाहिए। काम जरूरी है लेकिन काम के साथ लगातार 8 से 10 घंटे की नींद लेना भी जरूरी है।
क्वॉलिटी ऑफ लाइफ जरूरी
कोरोना के बाद अब हर किसी को 7 दिन काम करने के लिए तैयारी करनी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जीवन की गुणवत्ता में सुधार ले तो काम का भार उन्हें बीमार नहीं पड़ेगा। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट दीप्त्ति कार्ल कहते हैं कि क्वालिटी ऑफ लाइफ लेजर एक्टिविटी और रीक्रिएशनल एक्टिविटी से सुप्रभात है। हर 15 दिन में बीच में इन एक्टिविटीज को काम करना जरूरी है। रीक्रिएशनल एक्टिविटी का मतलब है ऐसा कोई काम जो पहले करो लेकिन अब नहीं करोगे. उस काम को करने से आपको बहुत ख़ुशी हुई थी. जैसे बचपन में किसी को झूला-झूलाते या दोस्तों के साथ घूमने-फिरने का आनंद मिलता था। इस तरह की सक्रियता समिति शुरू होती है। वहीं, लेजर एक्टिविटी का मतलब पेंटिंग, सिंगिंग, शॉपिंग या गार्डनिंग जैसे अपने पसंदीदा शौक से है। काम के बोझ के बीच से महीने में 2 दिन अपने लिए भ्रमण से कभी तनाव नहीं होगा।
पहले प्रकाशित : 19 सितंबर, 2024, 19:24 IST
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