सेहत – दोस्ती से भी जुड़ेंगे? जहरीली उगलेगी हवा, ये 5 खतरनाक संकेत दे रहे सबूत
अंतिम दर्शन से पहले ही प्रोडक्शन- प्रोडक्शन में प्रोडक्शन उत्पाद की वृद्धि हुई है। फ़िल्फ़िन और एक क्यूई ख़राब और बहुत ख़राब श्रेणी में पहुंच गया है।
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण: अभी तक प्रदूषण मामले में पूरे मैडोना शहर का ही नाम सबसे ऊपर रहता है। सार्डियां अभी भी शुरू नहीं हुई हैं, यहां तक कि धूल और साझी हवा की चादर बिछुड़ने लगी है। लेकिन अब एक और सिटी जो एयर पॉल्यूशन की रेस में भी आगे की तरफ दिखाई दे रही है। भारत में टॉप करने वाली और बसने वाले लोगों के सामने अब बड़ा संकट खड़ा होने वाला है और अब भी खतरनाक रूप से देखा जा सकता है। अलेगन और पर्यावरण से जुड़े एक हिस्से की पसंद तो आने वाले समय में एसोसिएटेड से भी जुड़कर शहर बन सकता है।
बता दें कि पिछले 3 दिनों में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और यूपीसीबी के आंकड़ों से जहां अलफांस में एयर रियलिटी खराब या बहुत खराब श्रेणी में पहुंच गई है, वहीं कुछ पूर्वी यूरोप में एयर रियलिटी सी वीर यानी गंभीर संकट की स्थिति में दर्ज किया गया है। है. जिसमें सेटर 125 सहित कई इलाके शामिल हैं। यहां एयर स्ट्राइकवैलिटी इंडे 400 से ऊपर पहुंच गई थी। एक पार्ट की छूट तो ऐसा होने वाले समय में बड़े खतरे का संकेत है।
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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायमेंट में एयर पॉल्यूशन कंट्रोल यूनिट में प्रबंधन प्रबंधक विवेक चट्टोपाध्याय, News18hindi ऐसा कहा जाता है कि आने वाले समय में ग्रैंड फ्रेंड से सहमति हो सकती है, इसकी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इसके पीछे कई ठोस कारण हैं।
- डाउन पवन क्षेत्र
विवेकाधिकार का कहना है कि प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारण हवा की गति और हवा का रुख भी है। और ग्रेटर अलैहिस्सलाम के डाउन विंड क्षेत्र में आते हैं। मौसम बदलता है तो हवा की दिशा बदल जाती है। आम तौर पर पर फिलॉफ़ का प्लास्टिसिन इन दोनों रेज़्यूमे से स्टार कास्ट है। वहीं अगर हवा की गति कम है तो वह इन इलाकों में भी रुक जाता है।
2. औद्यौगिक क्षेत्र
अलॉफ़िक़, ग्रेटर, ग़ाज़ियाबाद, साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र हैं। यहां भारत में वास्तुशिल्प बहुत प्रचलित हैं, इनमें से आश्रम वाली गैसें और प्रदूषण तत्त्व यहां की हवा में जहर उगलते रहते हैं। मूल कारण से प्रदूषण का अवशेष यहाँ रेजिडेंसियल पूर्वी तट के अवशेष ही रहते हैं।
3. पावर कट
पावर कट में बहुत कम होता है जबकि ग्रेटर में रोज ही पावर कट की संगति बहुत कम होती है। ऐसे में इलैक्ट्रिसिटी बार-बार कट होने से यहां मौजूद इंड केडीजीज काम चालू रखने के लिए डीजल आदि से चलने वाले हैवी यूनिटर या मयंक विकल नॉमिनेटों को अपनाते हैं जो प्रदूषण में बहुत आगे हैं।
4. पब्लिक पब्लिक कम होना
एलओकेएटी-ग्रेटर में पब्लिक आर्ट्स की सुविधा 50 प्रतिशत भी नहीं है। मेट्रो, इलेक्ट्रिक परिवार आदि की सुविधा बहुत कम है। यहां रहने वाले आवासीय लोग निजी स्वामित्व का ही उपयोग करते हैं। साथ में ही गुप्त स्थान पर रहने के लिए, यहां एक-एक घर में कई-कई टुवहिलर और चार वाहनर गाडि़यां आसानी से मिल जाती हैं। ऐसे में जब ये गाडि़यां रोबोट हैं तो यीआन वोला स्माइक, पार्टिकल ओल मेटर प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में योगदान देते हैं।
5. तेजी से कंकण तरंग दैर्ध्य
शहर के लाखों लोगों की आबादी यहां रुकी हुई है, यहां के लोगों के लिए रिहाइशी डेरे का उपयोग तेजी से किया जा रहा है। साथ ही औद्योगिक और वाणिज्यिक निर्माण को भी बढ़ावा दिया गया है। जिस तरह के प्रदूषण को लेकर निर्माण कार्य आदि पर रोक लगी हुई है, उसमें ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
में गूंजेगी हवा?
विवेक चट्टोपाध्याय का कहना है कि जैसे-जैसे ठंड का मौसम आता है, वैसे-वैसे प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ता जाता है। यहां की हवा में अभी से जहर उगना लगा है, अगर अभी से इन शहरों में सांस्कृतिक स्मारकों को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं की जाती है तो आने वाले दिनों में यहां रहना मुश्किल हो सकता है।
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पहले प्रकाशित : 26 सितंबर, 2024, 11:21 IST
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