Political – गठबंधन की सरकार बनती है, क्या नेता प्रतिपक्ष भी बन सकता है, MVA को महाराष्ट्र विधानसभा में मिलेगा पद?- #INA

सूत्रों का दावा है कि महाराष्ट्र विधानसभा में महाविकास अघाड़ी (MVA) नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने की तैयारी में है.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी और एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरा है. वहीं, किसी भी विपक्षी दल को अकेले इतनी सीटें नहीं मिली हैं, जिससे वह नेता प्रतिपक्ष के पद का दावा कर सके. ऐसे में सूत्रों का दावा है कि महाराष्ट्र विधानसभा में महाविकास अघाड़ी (MVA) नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने की तैयारी में है. इसके लिए वह गठबंधन का हवाला दे सकता है.

आइए जान लेते हैं कि अगर केंद्र या राज्य में गठबंधन की सरकार बन सकती है तो क्या नेता प्रतिपक्ष भी गठबंधन को मिल सकता है?

गठबंधन की सरकार का प्रावधान

केंद्र या किसी भी राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिले तो सबसे बड़ा दल या कोई भी और पार्टी दूसरे दलों के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश कर सकता है. ऐसी सरकारें बनती भी रही हैं और केंद्र की वर्तमान सरकार भी भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है. इस एनडीए सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. राज्यों में भी ऐसे ही गठबंधन की सरकारें बनती रही हैं. हालांकि, संसद के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए किसी भी दल के पास सदन में कुल सदस्यों की संख्या का कम से कम 10 फीसद का आंकड़ा होना चाहिए. यह नियम लोकसभा के पहले अध्यक्ष जीवी मावलंकर का बनाया हुआ है. राज्यों की विधानसभाओं में भी इसी नियम का पालन किया जाता है.

ये भी पढ़ें

गठबंधन का नेता प्रतिपक्ष का उदाहरण नहीं

आज तक संसद या किसी भी विधानसभा में किसी गठबंधन की ओर से नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए दावा नहीं किया गया है और न ही किसी गठबंधन को यह पद मिला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 2014 और 2019 में एनडीए की सरकार बनी तो लोकसभा में किसी भी पार्टी के पास इतने सदस्य नहीं थे कि उसे नेता प्रतिपक्ष का पद मिल पाता. ऐसे में 10 सालों तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली ही रहा. 2024 के चुनाव में कांग्रेस 10 फीसद सदस्यों की शर्त पूरी करने में सक्षम हुई तो राहुल गांधी को यह पद मिला.

विशेषज्ञ ने भी संभावना से किया इनकार

अब महाराष्ट्र विधानसभा में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई है कि किसी भी दल के पास नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए जरूरी आंकड़ा नहीं है. ऐसे में भले ही महाविकास अघाड़ी इस पद के लिए दावा ठोंके पर नियम और परंपरा में व्यवस्था नहीं होने के कारण यह पद उसे मिलता दिख नहीं रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे भी कहते हैं कि विपक्ष का नेता अथवा नेता प्रतिपक्ष भारतीय संसद के दोनों सदनों में से प्रत्येक में आधिकारिक विपक्ष का नेतृत्वकर्ता होता है. विपक्ष में बैठने वाले दलों में जिस दल के पास सर्वाधिक सीटें होती हैं, उसके किसी सांसद को विपक्ष का नेता चुना जाता है, यदि विपक्ष के किसी भी दल के पास कुल सीटों का 10% नहीं है तो ऐसी दशा में सदन में कोई विपक्ष का नेता नहीं हो सकता. 10% अंश की गणना दल के आधार पर होती है, गठबंधन के आधार पर नहीं . भारतीय संसद या विधानसभा की नियमावली में नेता विपक्ष गठबंधन का होगा ऐसा वर्णन नहीं मिलता है.

खाली ही रहेगा नेता प्रतिपक्ष का पद

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विनीत जिंदल का कहना है कि महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर असमंजस है. किसी भी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को चुनने के लिए किसी भी विपक्षी दल के पास कुल सदस्यों के आंकड़े का 10 फीसदी होना जरूरी है. महाराष्ट्र की बात करें तो कुल मिलाकर 288 सीटें हैं. इसके हिसाब से 10 फीसद यानी 29 सीटें किसी दल के पास होनी चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना (यूटीबी) के पास विपक्ष में सबसे ज्यादा 20 सीटें हैं. कांग्रेस के पास 16 और एनसीपी (शरद पवार) के पास 10 सीटें हैं. ऐसे में तीनों ही पार्टियां विपक्ष के नेता की जरूरत को पूरा नहीं करतीं. इसीलिए इस विधानसभा में महाराष्ट्र को विपक्ष का नेता नहीं मिल पाएगा.

एडवोकेट जिंदल का कहना है कि इससे पहले गुजरात और मेघालय में ऐसा होता रहा है कि जरूरत पूरी नहीं होने के कारण विपक्ष के नेता का पद खाली रहा है. महाराष्ट्र में सामने यह आ रहा है कि सभी विपक्षी पार्टियां मिलकर विपक्ष के नेता के लिए दावेदारी पेश करेंगी. कानून में किसी भी तरीके से इस तरह का प्रावधान नहीं है कि कई पार्टियां मिलकर विपक्ष के नेता के पद के लिए दावेदारी पेश कर सकें या उनका नेता चुना जा सके. इसलिए विपक्ष की सीट महाराष्ट्र में खाली ही रहेगी.

यह भी पढ़ें: क्या है तमिलनाडु में आने वाले चक्रवात फेंगल का सऊदी अरब कनेक्शन?

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button