डॉक्टर अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि मनाई!

रिपोर्ट - अमरदीप नारायण प्रसाद

पन्ना , पवई,शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में डॉक्टर अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि के अवसर पर शिक्षक सतानंद पाठक ने छात्र-छात्राओं को उनके जीवन के बारे में प्रकाश डालते हुई बताया कि डा. कलाम की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद भी आडम्बरों से दूर रहे। वे जहां भी जातेे, वहां छात्रों से अवश्य मिलते थे। वे उन्हें कुछ निरक्षरों को पढ़ाने तथा देशभक्त नागरिक बनने की शपथ दिलाते थे। उनकी आंखों में अपने घर, परिवार, जाति या प्रान्त की नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश की उन्नति का सपना पलता था। वे 2020 ई. तक भारत को दुनिया के अग्रणी देशों की सूची में स्थान दिलाना चाहते थे। साहसी डा. कलाम ने युद्धक विमानों से लेकर खतरनाक पनडुब्बी तक में सैनिकों के साथ यात्रा की।

मुसलमान होते हुए भी वे सब धर्मों का आदर करते थे। वे अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर गये, तो श्रवण बेलगोला में भगवान बाहुबलि के महामस्तकाभिषेक समारोह में भी शामिल हुए। उनकी आस्था कुरान के साथ गीता पर भी थी तथा वे प्रतिदिन उसका पाठ करते थे। उनके राष्ट्रपति काल में जब भी उनके परिजन दिल्ली आये, तब उनके भोजन, आवास, भ्रमण आदि का व्यय उन्होंने अपनी जेब से किया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में होने वाली ‘इफ्तार पार्टी’ को बंदकर उस पैसे से भोजन सामग्री अनाथालयों में भिजवाई। उनके नेतृत्व में भारत ने पृथ्वी, अग्नि, आकाश जैसे प्रक्षेपास्त्रों का सफल परीक्षण किया, जिससे सेना की मारक क्षमता बढ़ी। भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाने का श्रेय भी डा. कलाम को ही है। शासन ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

आजीवन अविवाहित रहे डा. कलाम अत्यधिक परिश्रमी और अनुशासन प्रेमी थे। वे कुछ वर्ष रक्षामंत्री के सुरक्षा सलाहकार भी रहे। राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी वे विश्वविद्यालयों में जाकर छात्रों से बात करते रहते थे। वे चाहते थे कि लोग उन्हें एक अध्यापक के रूप में याद रखें। 27 जुलाई, 2015 को शिलांग में छात्रों के बीच बोलते समय अचानक हुए भीषण हृदयाघात से उनका निधन हुआ। 30 जुलाई को उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ रामेश्वर में ही दफनाया गया। उन्नत भारत के स्वप्नद्रष्टा, ऋषि वैज्ञानिक डा. कलाम द्वारा लिखित पुस्तकें युवकों को सदा प्रेरणा देती रहेंगी।

Back to top button