भागवत पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण का है स्वरूप -श्रीदास महराज
🔵श्रीचित्रगुप्त धाम स्थित श्रीचित्रगुप्त मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का तीसरा दिन
🔴कथा सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
कुशीनगर । अन्तर्राष्ट्रीय कथा वाचक व श्री चित्रगुप्त मंदिर के पीठाधीश्वर ने कहा कि श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है।
पडरौना नगर के श्रीचित्रगुप्त धाम स्थित श्रीचित्रगुप्त मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन पाण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि श्रीमदभागवत के एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है। कथा सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कथा के मध्य में मेरी लगी श्याम संग प्रीत और मां की ममता के महत्व का भजन सुनकर भक्त आत्मसात हो गये।कथा वाचक ने कहा कि जिस स्थान पर अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान होने की आशंका हो उस स्थान पर कभी नही जाना चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्मदाता पिता का ही घर क्यों न हो। कथा के दौरान माता सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा। उन्होंने भक्त प्रह्लाद प्रसंग का बखान करते हुए कहा कि भक्त प्रह्लाद ने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुना था। जिसके सुनने मात्र से भक्त प्रह्लाद के कई कष्ट दूर हो गए थे। उन्होंने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन में दिया जाता है, वह जीवन भर उसका ही स्मरण करता है। ऐसे में बच्चों को धर्म व आध्यात्म का ज्ञान दिया जाना चाहिए। माता-पिता की सेवा व प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल है। अच्छे संस्कारों के कारण ही ध्रुव जी को पांच वर्ष की आयु में भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ। इसके साथ ही उन्हें 36 हजार वर्ष तक राज्य भोगने का वरदान प्राप्त हुआ था। कथा के बीच बीच मे मनमोहक भजन की प्रस्तुत सुन मौजूद श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो रहे थे।