सेहत – मेडिकल की दुनिया में नया चमत्कार, अब 15 साल पहले चलेगा पार्किंसंस का पता, इजरायली शोधकर्ताओं का कमाल

तेल अवीव. जंग के बीच इजराइल से एक बड़ी खबर है. मेडिकल साइंस की दुनिया में ये किसी चमत्कार से कम नहीं है। वैसे तो कई लाइलाज लाइलाज बीमारियाँ हैं, इलाज दवाएं नहीं हैं, लेकिन अगर समय से पहले इसका पता चल जाए, तो उस बीमारी से बचा जा सकता है। पार्किंसंस भी एक ऐसी ही बीमारी है, लेकिन अब पहली बार तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने समुद्री भोजन में प्रोटीन के जमा होने का पता लगाया है, जो पार्किंसंस रोग की पहचान करता है।

इसका मतलब यह हुआ कि पार्किंसंस का पहला लक्षण 15 साल पहले ही दिखाई दिया था, इस बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है, ताकि समय पर इलाज शुरू हो सके और इस तरह से इस लाइलाज बीमारी को ठीक किया जा सके। प्रो. उरी अशेरी और तेल अवीव विश्वविद्यालय के बिटकॉइन छात्र ओफिर साडे ने कहा कि शोधकर्ताओं ने 2 जीन उत्परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया, जो एशकेनाज़ी अध्ययन में बड़ी मात्रा में पाए गए हैं। प्रोफेसर अशेरी और साडे की अवाज में इजरायली मेडिकल सेंटर्स, जर्मनी और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने यह खोज की है।

अशेरी ने टाइम्स ऑफ इज़रायल को बताया, “हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में समुद्र तट पर पार्किंसंस के परिवार के लिए इलाज के उपाय संभव होंगे, जिसमें इस बीमारी के विकसित होने का खतरा होता है।” सुपर-रिज़ॉल्यूशन वैज्ञानिकों का इस्तेमास करते हुए, शोधकर्ताओं ने पार्किंसंस नावेल के समुद्री मील की जांच की – उनके मस्तिष्क से नहीं, बल्कि उनकी त्वचा से। यह अध्ययन इस महीने साइंटिफिक जर्नल ‘फ्रंटियर्स इन मॉलिक्यूलर न्यूरोसाइंस’ में प्रकाशित हुआ है।

पार्किंसंस रोग
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूडब्लूए) के अनुसार, पार्किंसंस रोग एक मस्तिष्क की स्थिति (मस्तिष्क की स्थिति) है, जिसके कारण से पूरक आहार में दर्द, सिरदर्द और सिरदर्द की समस्या होती है। पिछले 25 वर्षों में पार्किंसंस का प्रभाव दोगुना हो गया है। दुनिया भर में लगभग 8.5 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और इज़रायल में हर साल 1,200 नए लोगों की पहचान की जाती है। अशेरी ने कहा कि पार्किंसंस वास्तव में मिडब्रेन के सब्सटेन्सिया निग्रा क्षेत्र में डोपामाइन का उत्पादन करने वाले विस्फोट से पैदा हुआ है।

जब तक पार्किंसंस के शरीर के हिलने-डुलने से जुड़े लक्षण दिखाई देते हैं, तब तक 50 से 80% डोपामिनर्जिक स्तर पहले ही मर चुके होते हैं, और उन्हें फिर से जीवित करने का कोई रास्ता नहीं होता है। इसलिए, आज के समय में इसका इलाज “काफ़ी सीमित” है। अशेरी ने बताया कि ऐसा होता है क्योंकि मरीज पहले ही “बीमारी के अग्रिम चरण” में होते हैं।


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