Political – कैसे पार होगी सियासी नाव? कश्मीर की बदली फिजा ने बढ़ाई नेशनल कॉन्फ्रेंस की टेंशन- #INA
फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर को होगा. इस चरण में 26 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इसमें श्रीनगर जिले की हजरतबल, खानयार, हब्बाकदल, लाल चौक, चन्नपोरा, जदीबल, ईदगाह और सेंट्रल शाल्टेंग सीट है. साथ ही बडगाम, बीरवाह, खानसाहिब, चरार-ए-शरीफ और चदूरा सीट पर भी वोट डाले जाएंगे. बडगाम सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला भी मैदान में हैं. इस बार वो दो सीटों (गांदरबल और बडगाम) पर चुनाव लड़ रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस को इस बार कश्मीर घाटी में कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. इसकी प्रमुख वजह है निर्दलीय उम्मीदवारों की भरमार और चुनाव में अलगाववादी नेताओं का होना. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस बार के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने क्या चुनौती हैं.
गुपकार गठबंधन का हिस्सा रहीं महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी इस बार अकेले चुनाव लड़ रही है. ऐसे में कश्मीर की कई सीटों पर पीडीपी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस की मुसीबत बढ़ा रखी है. इसमें गांदरबल और बडगाम सीट भी है, जहां से उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ रहे हैं. गांदरबल में उमर के सामने पीडीपी के आगा सैयद हैं, जो कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
सबसे बड़ी चुनौती निर्दलीय उम्मीदवार
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने एक और चुनौती है. वो है आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवार. दूसरे चरण में उसके कई उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन पर गंभीर अपराधों के आरोप हैं. पीडीपी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार भी इस मुद्दे का उछाल रहे हैं.
कांग्रेस से गठबंधन होने के बावजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने निर्दलीय उम्मीदवार बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. रिकॉर्ड संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों का मैदान में उतरना वोटों का विभाजन कर सकता है. हालांकि, इससे निपटने के लिए एनसी भरसक प्रयास कर रही है. क्या इसमें उसे कामयाबी मिलेगी, ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे.
अलगाववादियों ने बढ़ाई टेंशन
इस बार कश्मीर की सियासी फिजा काफी बदली-बदली सी है. खासकर अलगाववादी नेताओं का जम्हूरियत में यकीन करना. अब तक वो चुनाव बहिष्कार का आह्वान करते आए हैं. मगर, अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव में वो किस्मत आजमा रहे हैं. यह बदलाव नेशनल कॉन्फ्रेंस के गले की फांस बना हुआ है.
इसकी वजह ये है कि उसे अब ऐसे नेताओं से मुकाबला करना है, जो उसके पारंपरिक वोट को विभाजित कर सकते हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने बाहरी ही नहीं आंतरिक चुनौतियां भी हैं. लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला की इंजीनियर राशिद के सामने हार से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा है. लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रमुख नेता का चुनाव हारना, विधानसभा चुनाव में मनोवैज्ञानिक तौर पर एनसी के लिए परेशानी का सबब है. इससे निपटने के लिए उमर कड़ी मेहनत करते दिख रहे हैं.
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